यूँ तो आज भी पुस्तक प्रेमियों की संख्या अधिक नहीं है, तिस पर ऐसे विषयों के पाठकों का अपना एक विशेष वर्ग है। मेरा मानना है कि यदि अपवाद को त्याग दिया जाए तो इन्हें पढ़ने के लिए स्पेसिफिक मूड की भी जरूरत पड़ती है।

यूँ तो आज भी पुस्तक प्रेमियों की संख्या अधिक नहीं है, तिस पर ऐसे विषयों के पाठकों का अपना एक विशेष वर्ग है। मेरा मानना है कि यदि अपवाद को त्याग दिया जाए तो इन्हें पढ़ने के लिए स्पेसिफिक मूड की भी जरूरत पड़ती है।
फेसबुक पर Anand जी की लेखनी से हम सब परिचित हैं। साहित्य, अध्यात्म, राजनीति और समाज पर इनके लेख आते रहते हैं। अध्यात्म को ले कर हम सब में एक प्रकार की झिझक होती है, लगता है कि हमें समझ में नहीं आएगा। हम मान
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